Sunday 31 January 2016

बस तुम ही हो




मुझमे तो तुम हो
यादो में तुम हो
 बातो में तुम हो
ख्वाबो में तुम हो
इरादों में तुम हो
नजरो में तुम हो
नजारो में तुम हो
चंदा में तुम हो
सितारों में तुम हो
तुम ही हो सिर्फ तुम ही हो

Saturday 30 January 2016

तब और अब

गर मुझसे ही था प्यार तुझे,
  कैसे शुरू हुआ नफरतो का सिलसिला ।

कैसे भूल गई उन दिनों को ,
तुम जब हमारा था दिल मिला ।

पहली पहली बार कोई जो ,
मेरे नजरों में छायी रहती थी ।

पहली - पहली बार कोई ,
मेरे दिल में समायी रहती थी ।

मीठी -मीठी सी धुनों को वो ,
बस मेरे संग गाया करती थी ।

सुंदर - सुंदर रंगो से वो ,
मेरे ख्वाबों को सजाया करती थी ।

फूलों जैसी उसकी हंसी थी ,
मुझको भी हंसाया करती थी ।

गम जितने भी दिए मैंने उसे ,
मुझको न रुलाया करती थी ।

Thursday 28 January 2016

मुस्कुराया जाये - muskuraya jaye

                   थोडा मुस्कुराया जाये

चलो आज फिर
थोडा मुस्कुराया जाये

जलने वालो को बिना
माचिस के जलाया जाये

लोगो को अपनी
 खुशियाँ दिखाया जाये

चलो आज फिर
थोडा मुस्कुराया जाये

आग दुश्मन के दिल में
 फिर से लगाया जाये

जलने वालो को बिना
 माचिस के जलाया जाये

चलो आज फिर
थोडा मुस्कुराया जाये

दिन को अपने आज और
खुशनुमा बनाया जाये

चलो आज फिर
थोडा मुस्कुराया जाये।

आपका दोस्त -- सुमित सोनी

Wednesday 27 January 2016

मेरा बचपन

           बचपन- छुटपन की यादों में 


खोये छुटपन की यादो में
जब मस्त मगन हम होते थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
जब हम अनजाने बच्चे थे ।

हर अनजानी चीजो को
देख के खुश हम होते थे
नित सूर्य की नयी रश्मियों को
कोमल हाथों से छूते थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
जब हम अनजाने बच्चे थे ।

आसमान के उस छोर के
बारे में सोचा करते थे
और तितलियों के पीछे -पीछे
हम बच्चे दौड़ा करते थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
जब हम अनजाने बच्चे थे ।

खेल कूद खूब दौड़ा भागी
साथियो संग करते थे
कभी था हँसना कभी था रोना
पर मस्ती में ही जीते थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
जब हम अनजाने बच्चे थे ।।
                   
आपका दोस्त - सुमित सोनी

नजर और नजारें

                   नजर और नज़ारे

बदल दिया है तूने अपने नजरो को ,
और अब नजारों को दोष दे रही है ।

फँस गई है अपने दिल के भँवरों में ,
और अब किनारों  को दोष दे रही है ।

तूने ही किया था इजहार-ऐ -इश्क़ मुझसे ,
और अब मेरे दिल के इशारों को दोष दे रही है ।

     आपका दोस्त - सुमित सोनी

मेरी वो

              मेरी वो .......

वो बारजे में खड़ी थी
हम दीदार कर रहे थे

थे कुछ लोग मोहल्ले में
जो मेरी नसीब पे जल रहे थे

कुछ तो इतने भी कमीने निकले
की मेरे घर पे सब कुछ बता दिया यारो

फिर क्या था जब मै घर पहुंचा तो
पापा डंडा लेकर मेरा इंतजार कर रहे थे ।।

   आपका दोस्त -सुमित सोनी

Tuesday 26 January 2016

वो शख्श


अनजान रह गया वो
शख्श जिंदगी में 
जिसने औरो की फिक्र में 
जिंदगी गुजार दी ।।

गरीब रह गया वो 
शख्श जिंदगी में
जिसने औरो की जरुरत पर
अपनी उधार दी ।।

वो तो मिटता रहा 
लोगो की खुशियों पर
लोगो ने मिल कर 
उसकी दुनिया उजाड़ दी ।।

वो तो लगाता रहा
उम्र भर चाहत के फूल 
लोगो ने मिलकर 
उसकी बगिया ही उजाड़ दी ।।

फैलता रहा वो हरदम 
प्रकाश सबके जीवन में
सबने मिलकर उसकी जिंदगी 
घुप्प अंधेरो में पाट दी ।।
      
      आपका मित्र - सुमित सोनी

Special post

मेरा बचपन

            बचपन- छुटपन की यादों में  खोये छुटपन की यादो में जब मस्त मगन हम होते थे वो दिन भी कितने अच्छे थे जब हम अनजाने बच्चे थे । ...