कविता -: सिया उठो और धनु सम्भालो
नारी सशक्तिकरण
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सिया उठो तुम धनु सम्भालो,
अब तो अपनी राम तुम्हीं हो
स्वयं तुम्हें ही वन जाना है,
फिर अपना भाग्य निभाना है,
आज यही निश्चय कर लो तुम,
पौरुष अपना दिखलाना है,
सिया उठो खुद को पहचानो,
तुलसी शालिग्राम तुम्हीं हो,
सिया उठो तुम धनु सम्भालो,
अब तो अपनी राम तुम्हीं हो, ( १. )
रावण आये हरने को जब
तुमको उसका वध है करना,
प्रश्न उठाये यदि कोई तो,
उसके सम्मुख उत्तर धरना,
सिया उठो तुम शस्त्र उठा लो,
सबकी पूर्ण विराम तुम्हीं हो,
सिया उठो तुम धनु सम्भालो,
अब तो अपनी राम तुम्हीं हो, ( २. )
मात पिता सब बनना भी है,
लव कुश तुमको जनना भी है,
रोक पुत्र के बाण स्वयं ही,
मान राम का धरना भी है,
दिनकर भी कहने आयेंगे,
तुम्हीं सुबह हो शाम तुम्हीं हो,
सिया उठो तुम धनु सम्भालो,
अब तो अपनी राम तुम्हीं हो, ( ३. )
क्रमशः ......
- सुमित सोनी
2 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (29-01-2020) को "तान वीणा की माता सुना दीजिए" (चर्चा अंक - 3595) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय रूप चन्द्र शास्त्री जी , धन्यवाद
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