राम गीत
राम ही मूल हैं वो समाधान हैं,
इस जगत के मेरे राम जी प्राण हैं।
टूटते आस में, मन के विश्वास में,
और इच्छा प्रतीक्षा में संत्रास में,
जग बहुत ही कठिन राम आसान हैं।
इस जगत के मेरे राम जी प्राण हैं।
हर तरफ तम घिरा और मन भी गिरा,
जब भटकता रहे आदमी सिरफिरा,
राम ही सत्य तब राम ही ज्ञान हैं,
इस जगत के मेरे राम जी प्राण हैं।
राम ही हैं गति राम विश्राम हैं
राम हैं योग में ध्यान में राम हैं,
योगियों के लिए राम उद्यान हैं,
इस जगत के मेरे राम जी प्राण हैं।
धर्म में, सत्य में, हैं सदाचार में,
बुद्धि बल में तथा लोक उपचार में,
राम जीवन के पावन अनुष्ठान हैं
इस जगत के मेरे राम जी प्राण हैं।
साधना थी कठिन पर किया राम ने,
हो सरल जिंदगी को जिया राम ने,
राम मानव के भीतर के भगवान हैं,
इस जगत के मेरे राम जी प्राण हैं।
– सुमित सोनी
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