राष्ट्रप्रेम
”जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।”
अर्थात्
मनुष्य ही नहीं वरन् चर-अचर, पशु-पक्षी सभी अपनी मातृभूमि से प्यार करते हैं ।
राष्ट्रप्रेम - राष्ट्र के प्रति सम्मान भाव रखना ,सदैव राष्ट्रहित में तत्पर रहना राष्ट्रप्रेम कहलाता है ।
राष्ट्र प्रेम हमारे अंदर की वो भावना है जो हमें अपने राष्ट्र के प्रति कृतज्ञ बनाती है , इसी भावना तथा श्रद्धा के कारण ही बहुत से वीर मातृभूमि के लिए प्राण भी दे चुके है और बहुत से वीर जवान अभी जज्बा भी रखते है ।
राष्ट्रप्रेम का अर्थ सिर्फ यह नही है की हम सीमा पर जाकर दुश्मन देशों से युद्ध कर के ही प्रेम जताए , स्थान से ज्यादा हमारा भाव महत्त्व रखता है हम युद्ध के अलावा नित्यप्रति भी अपने कर्मों से राष्ट्रप्रेम कर सकते है लेकिन याद रखें की हमे सिर्फ राष्ट्र प्रेम करने की आवश्यकता है , राष्ट्रप्रेम करते हुए दिखावा करने की नहीं ।
शायद आप लोगों ने भी अपने बचपन में स्वामी रामतीर्थ के जापान यात्रा के दौरान घटित हुए प्रसंग को पढ़ा होगा , जब स्वामी रामतीर्थ एक रेलवे स्टेशन पर अच्छे फलों की तलाश में थे और उन्होंने कहा की शायद यहां अच्छे फल मिलते ही नही तो एक जापानी नवयुवक ने उन्हें कहीं से ताजे फलों की भरी हुई टोकरी लाकर दी और बोला की स्वामी जी कृपया अब कहीं पर ये न कहें की जापान में ताजे फल नही मिलते , ये उच्चकोटि का राष्ट्रप्रेम था ।
जब स्वामी विवेकानंद जी ने अमेरिका में भी भारतीयता का परचम लहराने के उद्देश्य से पूर्ण भारतीय वस्त्रो में वहां के निवासियों के प्रति पूर्ण अपनत्व का भाव रखते हुए एक कीर्तिमान स्थापित किया वो भी राष्ट्र प्रेम था ।
हमारे स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों के बारे में तो आप जानते ही हैं की कई देशभक्तों ने अपने ठाठ बाठ वाले जीवन को त्याग कर राष्ट्र के भले के लिए कांटो - अंगारो वाले रास्तो पर चलना मंजूर किया उसे परम कोटि का देश प्रेम कहा जाता है ।
कुछ ऐसे कार्य है जिन्हें हम में से बहुत से लोग नित्यप्रति करते भी है तथा जो देश की भलाई के लिए ही होता है पर बहुत से लोग उसे राष्ट्र प्रेम का नाम नही देते ।
1- क्या आप भी असहायों के प्रति करुणा का भाव रखते हैं ?
2- क्या आप दुसरों की संभव मदद करते है ?
3- क्या आप रास्ते पर पड़े पत्थरों को हटा देते है ?
4- क्या आप बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूक है ?
5- क्या आप सबका सम्मान करते हो ?
6 - क्या आप महिलाओं और बच्चों का सम्मान करते हैं ?
7- क्या आप सार्वजानिक स्थानों के साफ सफाई का भी विशेष ध्यान रखते है ?
8- क्या आप भी प्रचलित कुरीतियों के उन्मूलन की सोचते है और कुछ करते भी हैं ?
हमें यह याद रखना होगा की हमारी देशभक्ति सिर्फ झूठे दावे-दम्भ , जय जयकार , झंडे फहराना , कट्टरता दिखाने और जोर जोर से चिल्ला के अपनी देश भक्ति दिखाने तक ही ना सीमित रह जाए ।
अंत में तो मैं बस यही कह के अपनी वाणी को विराम देना चाहूँगा की -
”जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है । वह नर नहीं, नर पशु निरा है और मृतक समान है ।।”
यहाँ क्लिक करें -
सुमित कुमार सोनी (फेसबुक)
”जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।”
अर्थात्
मनुष्य ही नहीं वरन् चर-अचर, पशु-पक्षी सभी अपनी मातृभूमि से प्यार करते हैं ।
राष्ट्रप्रेम - राष्ट्र के प्रति सम्मान भाव रखना ,सदैव राष्ट्रहित में तत्पर रहना राष्ट्रप्रेम कहलाता है ।
राष्ट्र प्रेम हमारे अंदर की वो भावना है जो हमें अपने राष्ट्र के प्रति कृतज्ञ बनाती है , इसी भावना तथा श्रद्धा के कारण ही बहुत से वीर मातृभूमि के लिए प्राण भी दे चुके है और बहुत से वीर जवान अभी जज्बा भी रखते है ।
राष्ट्रप्रेम का अर्थ सिर्फ यह नही है की हम सीमा पर जाकर दुश्मन देशों से युद्ध कर के ही प्रेम जताए , स्थान से ज्यादा हमारा भाव महत्त्व रखता है हम युद्ध के अलावा नित्यप्रति भी अपने कर्मों से राष्ट्रप्रेम कर सकते है लेकिन याद रखें की हमे सिर्फ राष्ट्र प्रेम करने की आवश्यकता है , राष्ट्रप्रेम करते हुए दिखावा करने की नहीं ।
शायद आप लोगों ने भी अपने बचपन में स्वामी रामतीर्थ के जापान यात्रा के दौरान घटित हुए प्रसंग को पढ़ा होगा , जब स्वामी रामतीर्थ एक रेलवे स्टेशन पर अच्छे फलों की तलाश में थे और उन्होंने कहा की शायद यहां अच्छे फल मिलते ही नही तो एक जापानी नवयुवक ने उन्हें कहीं से ताजे फलों की भरी हुई टोकरी लाकर दी और बोला की स्वामी जी कृपया अब कहीं पर ये न कहें की जापान में ताजे फल नही मिलते , ये उच्चकोटि का राष्ट्रप्रेम था ।
जब स्वामी विवेकानंद जी ने अमेरिका में भी भारतीयता का परचम लहराने के उद्देश्य से पूर्ण भारतीय वस्त्रो में वहां के निवासियों के प्रति पूर्ण अपनत्व का भाव रखते हुए एक कीर्तिमान स्थापित किया वो भी राष्ट्र प्रेम था ।
हमारे स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों के बारे में तो आप जानते ही हैं की कई देशभक्तों ने अपने ठाठ बाठ वाले जीवन को त्याग कर राष्ट्र के भले के लिए कांटो - अंगारो वाले रास्तो पर चलना मंजूर किया उसे परम कोटि का देश प्रेम कहा जाता है ।
कुछ ऐसे कार्य है जिन्हें हम में से बहुत से लोग नित्यप्रति करते भी है तथा जो देश की भलाई के लिए ही होता है पर बहुत से लोग उसे राष्ट्र प्रेम का नाम नही देते ।
1- क्या आप भी असहायों के प्रति करुणा का भाव रखते हैं ?
2- क्या आप दुसरों की संभव मदद करते है ?
3- क्या आप रास्ते पर पड़े पत्थरों को हटा देते है ?
4- क्या आप बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूक है ?
5- क्या आप सबका सम्मान करते हो ?
6 - क्या आप महिलाओं और बच्चों का सम्मान करते हैं ?
7- क्या आप सार्वजानिक स्थानों के साफ सफाई का भी विशेष ध्यान रखते है ?
8- क्या आप भी प्रचलित कुरीतियों के उन्मूलन की सोचते है और कुछ करते भी हैं ?
हमें यह याद रखना होगा की हमारी देशभक्ति सिर्फ झूठे दावे-दम्भ , जय जयकार , झंडे फहराना , कट्टरता दिखाने और जोर जोर से चिल्ला के अपनी देश भक्ति दिखाने तक ही ना सीमित रह जाए ।
अंत में तो मैं बस यही कह के अपनी वाणी को विराम देना चाहूँगा की -
”जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है । वह नर नहीं, नर पशु निरा है और मृतक समान है ।।”
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सुमित कुमार सोनी (फेसबुक)
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