Saturday 4 February 2017

वर्तमान हिंदी सिनेमा

                वर्तमान हिंदी सिनेमा

हम आज आदरणीय दादा साहब फाल्के जी के द्वारा लगाये गए उस बीज की चर्चा कर रहे है जो आज एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुका है ।
हिंदी सिनेमा आज हमारे मनोरंजन के साथ - साथ कुछ नए तहजीबों और नए तरीकों को सिखने का एक जरिया भी है इसी के वजह से हम अपने देश तथा विदेशों के भी अन्य विशेष गुणों को सिख लेते है जिन्हें हम शायद प्रत्यक्ष रूप से कभी भी जान नही पाते ।
विगत कई वर्षों से रामायण - महाभारत तथा पुराणों से  संबंधित कई फिल्में आई जिन्हें देखकर लोग कुछ अपने धार्मिक पुराणों और उनके किरदारों तथा पूज्य देवी देवताओं के बारे में रोचकता पूर्वक अधिक जानकारी भी प्राप्त किये ।

कुछ पारिवारिक पृष्ठभूमि की बेहतरीन फ़िल्में भी आई जिनके कारण हमारे समाज के रहन - सहन में भी थोड़ा और बदलाव आया जिससे हम अपने संस्कारों के साथ- साथ आधुनिक भी बनें ।

21 वीं सदी का यह दौर भी भारतीय सिनेमा में एक नए किस्म का बदलाव लेकर आया अब कई तरह की फ़िल्में बनने लगी है जिनमे से कुछ तो हमारे समाज के लिए सकारात्मक सन्देश देती है परंतु कुछ फ़िल्में ऐसी भी होती है जिनके कारण  दर्शक अपने जीवन की वास्तविकता से दूर होकर हवाई किले बनाने लगता है । कुछ फिल्मों में तो अश्लीलता दिखाने में भी संकोच नहीं होता । इनका किशोर मन पर बहुत बुरा प्रभाव पडता है । ऐसे फिल्मो को देखकर किशोर छोटी उम्र में ही अपने आवेगो पर से नियंत्रण खो बैठते है । कुछ लोगों के अंतर्मन पर मार-काट, हिंसा, बलात्कार, चोरी और डकैती आदि के व्यापक प्रदर्शन का बहुत  बुरा प्रभाव पड़ता है।

परंतु अब कुछ 3 - 4 वर्षों से हिंदी सिनेमा के विषय में फिर से बदलाव आने लगा है और अब तो उन सभी विषयों पर फिल्म बन रही है, जिसे समाज में कभी छिपाया जाता था. जैसे मानसिक रोग, समलैंगिकता, वैश्या बाज़ार, लिव-इन रिलेशनशिप, तलाक़, एक से ज्यादा प्रेम-संबंध. यह सब ऐसे विषय है जिन पर आज भी समाज का कई वर्ग बात करने से भी कतराता है. लेकिन फिल्मों के माध्यम से अब इन सभी विषयों पर लोग आपस में बात करने लगे है. इन सभी विषयों को समाज का हिस्सा मानने लगे है जिस से जागरूकता ही फैली है।

हाइवे जैसी फिल्में इसी सिनेमा के आज के परिवेश की देन हैं जिनसे अपने परिवार में लड़कियों पर हो रहे शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने को ताकत और तरीका मिलता है , कुछ बायोपिक फ़िल्में जो की किसी विशेष व्यक्तित्व के जीवन पर आधारित होता है जिन्हें देख कर हमे भी जीवन मे कुछ कर गुजरने की प्रेरणा मिलती है  मैरीकॉम और भाग मिल्खा भाग ऐसे फिल्मो के जबर्दस्त उदाहरण है ।


अभी हाल ही में एक सुल्तान नाम की फ़िल्म भी आई थी जो हमे हमारे सामान्य जीवन से जुडी लगने के कारण सकारात्मक विचारों से लबरेज कर रही थी ।

ऐसी ना जाने कितनी ही फिल्में आई जिन्होंने हमें कुछ अच्छा सिखाया तथापि कुछ बुरी फ़िल्में भी आई जिनके जिम्मेदार सिर्फ निर्माता ही नहीं वरन् कुछ हद तक दर्शक भी है यदि दर्शक ही ऐसे फिल्मों को सिरे से ख़ारिज कर दें जिनमे फूहड़ और अश्लील  दृश्यों और शब्दों से सजाया गया है तो ऐसी फिल्म आना स्वतः ही बंद हो जायेगी ।


उपसंहार - यदि हम गौर करे तो ऊपर बताई गई हानियाँ सभी सिनेमा की बुराइयाँ नहीं कही जा सकती , कुछ बुरी फिल्मों का कारण उसके निर्माताओं की अज्ञानता और धन-लोलुपता है। यदि निर्माता का उद्देश्य केवल धन कमाना ही ना हो तो हमारी फिल्मो का स्तर और भी ऊँचा उठ सकता है और इनकी मदद से देश का बड़ा उपकार हो सकता है । यदि इन बुराइयों को दूर कर दिया जाये, तो निश्चय ही हमारा भारतीय सिनेमा मानव-जीवन के विकास और देश के निर्माण में बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है ।


©सुमित चंद्र सेठ
सुमित कुमार सोनी
9450489148

Special post

मेरा बचपन

            बचपन- छुटपन की यादों में  खोये छुटपन की यादो में जब मस्त मगन हम होते थे वो दिन भी कितने अच्छे थे जब हम अनजाने बच्चे थे । ...